Sunday, September 25, 2011

जिंदगी का सपना!

सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!
सूरज से मांगी रौशनी, मिली धूप, हम लगे हैं तपने.

मैंने मन को खुला छोड़ा, कहीं भागा कहीं दौड़ा
लेकिन फिर भी जाने कैसे लम्हे खपे, जितने भी लिखे थे खपने.. सपने
जिंदगी में खोये सपने!

कितना फूंक फूंक पाँव धरा था, कितना नाप तोल रिस्क लिया था,
पहले जेबें ही खाली रहतीं, आज, उम्र भी लगी है नपने..
सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!

बच्चे थे तो हम बड़ों की, शकल धरते, नक़ल करते,
आज हो गए हैं देखो जब बड़े, करते फिर रहे हैं केवल बचपने.. सपने
जिंदगी में खोये सपने!


काश! पापा के कंधे मिल सकें, माँ की वो गोद मिल सके,
दीदी की थपकी पुरानी, मिल सकें वो मेरे सपने..
सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!

Tuesday, May 4, 2010

थोड़ी सी जो पी ली है

थोड़ी सी जो पी ली है, ऑंखें ये नशीली हैं
दो पेग ने ही कर डाली तबियत जरा ढीली है

हम गुम हैं ख्यालों, खोये खाली प्यालों में
उलझे हैं सवालों में, खुद की जुबां सी ली है

सब पूछें बड़े भाई, क्यूँ लब पे है तन्हाई
जामों ने करी dry सोचों की पतीली है

सिगरेट से बनी सीढ़ी, अधरों में पड़ी बीडी
सारी ढूंढती फकीरी, माचिस है न तीली है

कोई गीत सज रहा है, जाने क्यूँ उलझ रहा है
अरे फोन बज रहा है, उसने भी क्या पी ली है

हमसे कह रहे बातें, दर्दे-दिल की वारदातें
नैना टंगे हैं जाते, सर में गडी कीली है

कोई पेग बनता जाये, कोई पेग चढ़ाता जाये
कोई पेग गिरता जाये, पतलून हुई गीली है

कोई उल्टा बक रहा है, कोई उल्टी चख रहा है
कोई यूँ बिलख रहा है, मातम-ए-शेक्चिल्ली है

कोई शख्स रम में रम है, व्हिस्की का भी हरम है
वो वोदका के ब्रम्हा, यहाँ जूस रसीली है

कोई देता नहीं चादर, सब हो गए हैं मादर
सोएंगे यहीं फादर चाहे जमीं गीली है

कोई मार गया झापड़, कोई चूम गया आकर
मैं खा रहा था पापड़, वो मोजों की झिल्ली है

क्यूँ मन बहक रहा है, कुछ तो महक रहा है
कुछ तो दहक रहा है, मेरी शर्ट रंगीली है

बनियान तन रही है, ऐंठन सी बन रही है
सांसों में सन रही है, कैसी हवा नीली है

मैं फिर से उड़ रहा हूँ, पंखों से जुड़ रहा हूँ
बिन ब्रेक मुड़ रहा हूँ, कोई छैल छबीली है

Monday, April 12, 2010

झंड जिंदगी .. part 2

मुंह में भरे रखे हैं gs के हथगोले, सारी की सारी पिनें निकाल डाली हैं
लंड पे लिपटा हुआ है बारूद-ए-संस्कृत , गांड में pub ad की लम्बी दुनाली है
तदबीर से नजराने की उम्मीद करी थी, तकदीर ने माचिस की full डिबिया निकाली है
जिंदगी बचपन से थी पर अब तो रोज ही, ये झंड झंड बजर झंड रहने वाली है
सब लोग बड़े खुश हैं और पीटते ताली, हम हो गए पागल अब गाते कव्वाली हैं

Saturday, April 10, 2010

लगा नहीं कछु हाथ

चारंहू दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात
पोथी पढि पढि जग मुआ लगा नहीं कछु हाथ
लगा नहीं कछु हाथ पता चल गई सकल औकात
हम तो बीती बिसार दें, लोग दिलाएं याद

Friday, January 1, 2010

होते सारे व्यभिचार गए

दिल्ली की सड़कों के स्यापे पैरों को जमीं से उखाड़ गए
कारों से बचके क्या होता रंगीन नज़ारे मार गए

तुम गरम चाय के प्यालों से सर्दी को तौबा करते हो
क्या तीर-ए-हवाओं से बचना जब हुस्न के भाले मार गए

दिन रात बैठ कर के घर में शाह मत की बातें करते हो
रानी की चाल सुभानल्लाह हम प्यादों पे दिल हार गए

उनकी आँखों ने हमसे जब, यूँ अनबोली बोली बोली
लो चोरी करने आये थे, लो बनके चौकीदार गए


हमने उनके जलवे देखे नदिया में डुबकी मार गए
वो करते अत्याचार गए हम कहते उसको प्यार गए

मेहनत के फूल जुटाए थे विद्या के गजरे गूंथे थे
किस्मत फूटी थी बेचने हम उनको मीना बाजार गए

हमने सोचा था दिल्ली में अब कसके धूनी रमाएँगे (गांड मराएंगे)
दिल्ली साली क्या रंडी है होते सारे व्यभिचार गए

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न होगी जुलूसों में शिरकत तेरी बरात में ली थी सौं
हमने बखूब निभाया पर लेकर के जनाजा यार गए

Friday, September 11, 2009

बजर झंड जिंदगी

जिंदगी झंड, बजर झंड होने वाली है
हर सपना नर्वस है, दिल सवाली है
अरमानों को किस्मत ने दे दी गाली है
हर सिसकी पर अब तो बजनी ताली है
जिंदगी झंड, बजर झंड होने वाली है.
जेब चौकन्नी, न अठन्नी, बटुआ खाली है
शिकनों की परीशानी बढ़ने वाली है
होली unholy, दिवालिया दिवाली है
जिंदगी झंड, बजर झंड होने वाली है.
मैंने पगडण्डी नयी एक जो बना ली है
मैंने ये आरजू ही क्यूँकर नयी पाली है
गले में हथगोला सर पे तनी दुनाली है
जिंदगी झंड, बजर झंड होने वाली है.
मन में जो इमोसन है वो भी जाली है
जिंदगी झंड, बजर झंड होने वाली है.

Friday, December 26, 2008

गुट का

मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.
गुट के गुट ने ये ठान लिया
जो नींद में है वो जागेगा
हर ख्वाब को हक़ से मांगेगा
जो निपट अकेला चलता था
अब बन जाए वो भी गुट का
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम हैं गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
तू आम सही आवाम तो है
कल का ही सही पैगाम तो है
पर नशे में देश जो लूट रहे
बन जाता उनका जाम तू है
अब छलक निकल जा बोतल से
तू तोड़ कांच, शीशा चटका
अब जाम नहीं अंजाम तू बन
ले पहन ले जामा इस गुट का
मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.
साईकिल का ब्रेक भी है गुटका
हाथों का टेक भी है गुटका
है कमल के खाते पर गुटका
हाथी के माथे पर गुटका
हर चरखे का बाना गुटका
हर ऐनक का ताना गुटका
गुटके की खडाऊं खट खट है
हर लाठी है स्याना गुट का.
हर मनु में जब होगा गुट का
ये देश जो एकजुट होगा
हर सटके की तब फट लेगी
हर फटकेला भी सटकेगा
सटके ने गुटके को गटका
गुटके ने सटके ओ पटका
गुटके की फटाफट लाइन दो
बोलो झट से हो लो गुट का
हम हैं गुट के, गुट है गुट का.
मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम सब गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
This was written when I was travelling from bangalore to goa to meet the gang. Gut Ka is our NGO, which aims to satisfy our histrionic needs in the recent future. The poem is dedicated as a “nukkad” opening song for any of the hypothetical nukkads we might perform.