Sunday, September 25, 2011

जिंदगी का सपना!

सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!
सूरज से मांगी रौशनी, मिली धूप, हम लगे हैं तपने.

मैंने मन को खुला छोड़ा, कहीं भागा कहीं दौड़ा
लेकिन फिर भी जाने कैसे लम्हे खपे, जितने भी लिखे थे खपने.. सपने
जिंदगी में खोये सपने!

कितना फूंक फूंक पाँव धरा था, कितना नाप तोल रिस्क लिया था,
पहले जेबें ही खाली रहतीं, आज, उम्र भी लगी है नपने..
सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!

बच्चे थे तो हम बड़ों की, शकल धरते, नक़ल करते,
आज हो गए हैं देखो जब बड़े, करते फिर रहे हैं केवल बचपने.. सपने
जिंदगी में खोये सपने!


काश! पापा के कंधे मिल सकें, माँ की वो गोद मिल सके,
दीदी की थपकी पुरानी, मिल सकें वो मेरे सपने..
सपनों में खोई जिन्दगी, या जिंदगी में खोये सपने!

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