मुंह में भरे रखे हैं gs के हथगोले, सारी की सारी पिनें निकाल डाली हैं
लंड पे लिपटा हुआ है बारूद-ए-संस्कृत , गांड में pub ad की लम्बी दुनाली है
तदबीर से नजराने की उम्मीद करी थी, तकदीर ने माचिस की full डिबिया निकाली है
जिंदगी बचपन से थी पर अब तो रोज ही, ये झंड झंड बजर झंड रहने वाली है
सब लोग बड़े खुश हैं और पीटते ताली, हम हो गए पागल अब गाते कव्वाली हैं
Monday, April 12, 2010
Saturday, April 10, 2010
लगा नहीं कछु हाथ
चारंहू दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात
पोथी पढि पढि जग मुआ लगा नहीं कछु हाथ
लगा नहीं कछु हाथ पता चल गई सकल औकात
हम तो बीती बिसार दें, लोग दिलाएं याद
पोथी पढि पढि जग मुआ लगा नहीं कछु हाथ
लगा नहीं कछु हाथ पता चल गई सकल औकात
हम तो बीती बिसार दें, लोग दिलाएं याद
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