थोड़ी सी जो पी ली है, ऑंखें ये नशीली हैं
दो पेग ने ही कर डाली तबियत जरा ढीली है
हम गुम हैं ख्यालों, खोये खाली प्यालों में
उलझे हैं सवालों में, खुद की जुबां सी ली है
सब पूछें बड़े भाई, क्यूँ लब पे है तन्हाई
जामों ने करी dry सोचों की पतीली है
सिगरेट से बनी सीढ़ी, अधरों में पड़ी बीडी
सारी ढूंढती फकीरी, माचिस है न तीली है
कोई गीत सज रहा है, जाने क्यूँ उलझ रहा है
अरे फोन बज रहा है, उसने भी क्या पी ली है
हमसे कह रहे बातें, दर्दे-दिल की वारदातें
नैना टंगे हैं जाते, सर में गडी कीली है
कोई पेग बनता जाये, कोई पेग चढ़ाता जाये
कोई पेग गिरता जाये, पतलून हुई गीली है
कोई उल्टा बक रहा है, कोई उल्टी चख रहा है
कोई यूँ बिलख रहा है, मातम-ए-शेक्चिल्ली है
कोई शख्स रम में रम है, व्हिस्की का भी हरम है
वो वोदका के ब्रम्हा, यहाँ जूस रसीली है
कोई देता नहीं चादर, सब हो गए हैं मादर
सोएंगे यहीं फादर चाहे जमीं गीली है
कोई मार गया झापड़, कोई चूम गया आकर
मैं खा रहा था पापड़, वो मोजों की झिल्ली है
क्यूँ मन बहक रहा है, कुछ तो महक रहा है
कुछ तो दहक रहा है, मेरी शर्ट रंगीली है
बनियान तन रही है, ऐंठन सी बन रही है
सांसों में सन रही है, कैसी हवा नीली है
मैं फिर से उड़ रहा हूँ, पंखों से जुड़ रहा हूँ
बिन ब्रेक मुड़ रहा हूँ, कोई छैल छबीली है
Tuesday, May 4, 2010
Monday, April 12, 2010
झंड जिंदगी .. part 2
मुंह में भरे रखे हैं gs के हथगोले, सारी की सारी पिनें निकाल डाली हैं
लंड पे लिपटा हुआ है बारूद-ए-संस्कृत , गांड में pub ad की लम्बी दुनाली है
तदबीर से नजराने की उम्मीद करी थी, तकदीर ने माचिस की full डिबिया निकाली है
जिंदगी बचपन से थी पर अब तो रोज ही, ये झंड झंड बजर झंड रहने वाली है
सब लोग बड़े खुश हैं और पीटते ताली, हम हो गए पागल अब गाते कव्वाली हैं
लंड पे लिपटा हुआ है बारूद-ए-संस्कृत , गांड में pub ad की लम्बी दुनाली है
तदबीर से नजराने की उम्मीद करी थी, तकदीर ने माचिस की full डिबिया निकाली है
जिंदगी बचपन से थी पर अब तो रोज ही, ये झंड झंड बजर झंड रहने वाली है
सब लोग बड़े खुश हैं और पीटते ताली, हम हो गए पागल अब गाते कव्वाली हैं
Saturday, April 10, 2010
लगा नहीं कछु हाथ
चारंहू दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात
पोथी पढि पढि जग मुआ लगा नहीं कछु हाथ
लगा नहीं कछु हाथ पता चल गई सकल औकात
हम तो बीती बिसार दें, लोग दिलाएं याद
पोथी पढि पढि जग मुआ लगा नहीं कछु हाथ
लगा नहीं कछु हाथ पता चल गई सकल औकात
हम तो बीती बिसार दें, लोग दिलाएं याद
Friday, January 1, 2010
होते सारे व्यभिचार गए
दिल्ली की सड़कों के स्यापे पैरों को जमीं से उखाड़ गए
कारों से बचके क्या होता रंगीन नज़ारे मार गए
तुम गरम चाय के प्यालों से सर्दी को तौबा करते हो
क्या तीर-ए-हवाओं से बचना जब हुस्न के भाले मार गए
दिन रात बैठ कर के घर में शाह मत की बातें करते हो
उनकी आँखों ने हमसे जब, यूँ अनबोली बोली बोली
लो चोरी करने आये थे, लो बनके चौकीदार गए
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कारों से बचके क्या होता रंगीन नज़ारे मार गए
तुम गरम चाय के प्यालों से सर्दी को तौबा करते हो
क्या तीर-ए-हवाओं से बचना जब हुस्न के भाले मार गए
दिन रात बैठ कर के घर में शाह मत की बातें करते हो
रानी की चाल सुभानल्लाह हम प्यादों पे दिल हार गए
उनकी आँखों ने हमसे जब, यूँ अनबोली बोली बोली
लो चोरी करने आये थे, लो बनके चौकीदार गए
हमने उनके जलवे देखे नदिया में डुबकी मार गए
वो करते अत्याचार गए हम कहते उसको प्यार गए
मेहनत के फूल जुटाए थे विद्या के गजरे गूंथे थे
किस्मत फूटी थी बेचने हम उनको मीना बाजार गए
हमने सोचा था दिल्ली में अब कसके धूनी रमाएँगे (गांड मराएंगे)
दिल्ली साली क्या रंडी है होते सारे व्यभिचार गए
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न होगी जुलूसों में शिरकत तेरी बरात में ली थी सौं
हमने बखूब निभाया पर लेकर के जनाजा यार गए
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