अतृप्त
Thursday, June 8, 2006
जो रस है यौवन-श्रृंगर में
जो रस है यौवन-श्रृंगर में,
जो छह वसंत की भ्रिंगर में,
जो प्रेम समर्पित है प्रिय को,
वो सतत रहे कण-कण में / वो बसे ह्रदय के कण-कण में.
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Actually, You should go to...
कुछ तो लिखा है
Nakkarkhana
Labels
तरन्नुम
(16)
मुक्तक
(4)
अगद्य
(3)
बकवास
(3)
'A'dult
(1)
फनुवाद
(1)
Blog Archive
►
2011
(1)
►
Sep 2011
(1)
►
2010
(4)
►
May 2010
(1)
►
Apr 2010
(2)
►
Jan 2010
(1)
►
2009
(1)
►
Sep 2009
(1)
►
2008
(4)
►
Dec 2008
(1)
►
Nov 2008
(1)
►
Aug 2008
(1)
►
Apr 2008
(1)
►
2007
(2)
►
Dec 2007
(1)
►
Jun 2007
(1)
▼
2006
(2)
▼
Jun 2006
(2)
हंसी की चुम्मी…. पुच्ची !
जो रस है यौवन-श्रृंगर में
►
2005
(1)
►
Apr 2005
(1)
►
2003
(8)
►
Dec 2003
(1)
►
Oct 2003
(2)
►
Sep 2003
(1)
►
Aug 2003
(1)
►
Jul 2003
(1)
►
Jun 2003
(1)
►
Apr 2003
(1)
►
2002
(5)
►
Dec 2002
(1)
►
Sep 2002
(3)
►
Aug 2002
(1)
Followers
Subscribe To
Posts
Atom
Posts
Comments
Atom
Comments
No comments:
Post a Comment