Friday, June 9, 2006

हंसी की चुम्मी…. पुच्ची !

अपने होठों से हंसी को एक बार मिलने दे
जिंदगानी के ग़मों में खुशियाँ घुलने दे
जिंदगी मौत का पैगाम सही जाम सही
धीरे-धीरे निकल जाएगी वो शाम सही
तू उसी शाम में इक दौरे मजा चलने दे
अपने होठों से हंसी को एक बार मिलने दे
जिंदगानी के ग़मों में खुशियाँ घुलने दे
तू जो खुद को कभ कुम्हलाया सा पत्ता समझे
धुल की मोती परत में बस उदासी झलके
ओस की बूंदों से तू धुल जरा धुलने दे
अपने होठों से हंसी को एक बार मिलने दे
जिंदगानी के ग़मों में खुशियाँ घुलने दे

Thursday, June 8, 2006

जो रस है यौवन-श्रृंगर में

जो रस है यौवन-श्रृंगर में,
जो छह वसंत की भ्रिंगर में,
जो प्रेम समर्पित है प्रिय को,
वो सतत रहे कण-कण में / वो बसे ह्रदय के कण-कण में.