Saturday, October 25, 2003

हम जैसे यार कहाँ?

मदहोशियाँ छाई हैं, बेहोशियाँ समाई हैं, दिल में हमारे,
हम हैं खामोश क्यों?
कितना घना अँधेरा है, तनहाइयों का डेरा है, हर तरफ,
ऐसी गुमनामी क्यों?
कैसी ये हलचल है, मन क्यों ये चंचल है,
सुख-स्वप्नों का अंचल कहाँ?
मन में ये कैसी घुटन सी है, इन धडकनों में थकन सी है, आज फिर,
ये परेशानी क्यों?
लग गई है खुशियों को फांसी, चेहरे पे छाई उदासी, देखो तो,
रुक गई नब्ज क्यों?
गम का ये दलदल है, आंसू भरा बादल है,
सूरज वो अविचल कहाँ?
छोडो ये अपनी निराशा, आशा को थामो जरा सा, हंस भी दो
हंसने में जाता है क्या?
चेहरे को थोड़ा सा खिलने दो, अपने को खुशियों से मिलने दो, भूलो गम
खुद को न दो तुम सजा.
मिल भी लो यारों से, ओए दिलदारों से,
हम जैसे यार कहाँ?

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