Sunday, September 28, 2003

हम न रुकेंगे

हम न रुकेंगे, हम न झुकेंगे
छोड़ा थकना, अब न बुझेंगे.
हर बुझी शमा को हम जलाते रहेंगे.
मस्तानी शाम है, क्या धूम-धाम है
अपनी ख़ुशी में शामिल सारी आवाम है
हम तो गरजेंगे, हम ही बरसेंगे.
ठंडी चिंगारियों में शोले भरेंगे.
कैसी बेहोशी है, कैसी मदहोशी
दिलों में छाई है क्यों ये खामोशी
सब दिल धड्केंगे हम जब मचलेंगे.
इस समां की मस्तियों में जलवे भरेंगे.
झूम जाओ, नाचो गाओ
जाम की धुनों पे, धड़कने बजाओ
प्यार की कलियों से अब ये दिल महकेंगे.