Sunday, December 29, 2002

शाम की ऊहापोह

एक उदास शाम कल फिर मेरी तनहाइयों को
और तनहा कर गई;
मेरी गुमनामियों में, खामोशियों में
कुछ और टेल जड़ गई.
मैं अपनी उलझनों में डूबा हुआ,
उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहा था,
आई जो शाम,
मेरे समाधानों को अपनी आँधियों में समेटे
इक नई उलझन पैदा कर गई,
मेरी ख्वाहिशों में इक और ख्वाहिश की शुमारी कर गई.
ख्वाहिश एक अदद ख़ुशी की,
उस तरस में और खुश्की भर गई.
इतनी परेशानियों के बावजूद, वो शाम मेरे दिल से
एक प्यारी सी गुफ्तगू कर गई,
लगती तो दुश्मन थी पर जाने क्यूँ
मुझसे दोस्ती कर गई.
अचना आई थी, रुलाते हुए, गई भी अचानक और
एक बार फिर रुला कर गई,
एक अलग तरह से रुला कर गई.
आज फिर इक शाम आई है
कल वाली की यादों के साथ.
मैं दोनों को तुलना चाहता हूँ,
जानना चाहता हूँ -
बेहतर किसका तराना है?
वो जो आज हकीकत है या
वो जो आज फ़साना है.

Thursday, September 12, 2002

तीर धरो, धीर धरो, नीर भरो, टूट पडो

हे मानव! कुछ तो धीर धरो.
छोडो तुम ये अकुलाना;
अकुलाहट से होगा क्या,
पड़ जायेगा पछताना.
मन को अपने समझाना.
हे मानव कुछ तो धीर धरो,
तुम मानव हो, मानव सीमा में रह को कुछ तो तीर धरो.
हे मानव कुछ तो धीर धरो.
पांच-अगुण से क्या घबराना.
जब सच औ’सहस हो मन में,
इन सब को मार गिरना.
मानवता को फहराना.
हे मानव इनको न छोडो,
इन अवगुणों को दुश्मन मानो, इन पर टूट पड़ो.
हे मानव अब तो वार करो.
दुखियारों का जीवन जीना,
अपने जीवन की ज्योति दिखा,
उनका जीवन चमकाना.
तुम सबका साथ निभाना.
हे मानव सबकी पीर हरो,
ये जन्म तुम्हारा व्यर्थ न जाये, ऐसी सोच करो.
हे अनव सबकी मदद करो.
उम्मीद को तुम न सुलाना;
उम्मीद से अपने तन-मन में,
आशा का स्त्रोत जगाना.
तुम नई उमंगें लाना.
हे मानव नूतन दृश्य रचो,
इस अजब अनोखी दुनिया में, तुम भी तो कुछ नया करो.
हे मानव तो तो नींव धरो.
धीरज की नैया डूब अ पावे, ऐसी नीर भरो.
हे मानव कुछ तो धीर धरो

Thursday, September 5, 2002

दीदी आपके लिए .. 1+1 free

अरे देखो,
वो रात पुरानी है ढल चुकी
इक नया सवेरा निकल चूका
जीवन की सुन्दर बगिया में
देखो इक नया है फूल खिला
जिसकी सुगंध फैलेगी कल
और कल ही वो बतलाएगा
जो पल बीते उसके समक्ष
उनका वो हाल सुनाएगा .
उस कल की  तुम  तुरंत सोचो
और तुरत-फुरत फिर निर्णय लो
क्या करना होगा आज तुम्हे
उस फूल का जो मुर्झाएगा .
उसके मुरझाने से पहले
तुम निश्चित ही कुछ कर जाना
अपने मस्तिष्क हिमालय से
इक नए सूर्य को चमकाना .
जीवन का तेरे – ‘नया साल’
नई उम्मीद जगाता है
इक नई प्रेरणा देकर के
वो ‘नया फूल’ मुस्काता है .

Wednesday, September 4, 2002

दीदी आपके लिए

आपके,
जीवन की सुन्दर बगिया में
आने वाली है ऋतू नई
जिसकी मंजुल ठंडी बयार
देती पेडों को मृदु फुहार
फिर थपकी देती बीजों को
कहती फिरती है अरे उठो
इस मोदित-हर्षित जीवन में
तुम भी कुछ नूतन रंग भरो .
उसकी आहट सुनकर देखो
इक नया पौध है आज खिला
पाकर वो प्यार होए सिंचित
करता ये मन आज दुआ
उस पौधे को देखो, उसकी
अविरल मुस्कानों में खोजो
ऐसे फूलों को, कलियों को
जो नई उर्जा नया जोश
संप्रेषित कर इस बगिया में
दे दें तुमको इक रूप नया .
है यही तमन्ना आज की हम
जब भी फिर से इक साथ चलें
उस बगिया में,
तो हवा कहे
वो फूल जो कल मुरझाया था
इक नई शांति, नई उमंग
इक नई तरंग को लाया था .
हाँ हाँ उसने,
तेरा सपना,
तेरा भविष्य,
फिर से इक बार जगाया था .

Saturday, August 24, 2002

मधुर स्मृतियाँ

मधुर स्मृतियाँ ,
आह ! वो मधुर स्मृतियाँ
जो कभी मेरे जीवन की
मृदुल सच्चाइयाँ थीं ,
आज कुछ बिखरे हुए पन्नों में सिमटी हुई ,
चन्द तस्वीरों के आवरण में
अपने सूक्ष्म रूप को छिपाती-दिखाती
मेरे मन में आज फिर इक हूक सी जगाती हैं ,
मेरे दिल को उदास कर जाती हैं |मेरा दिल जो अब तक प्रसन्नता का आवरण ओढ़े हुए ,
भावपूणर् दोस्तों के बीच ,
मौजों के , मस्तियों के नीचे ,
यादों की आहों को दबाए हुए था ,
आज अचानक
तनहाइयों में सिसक पड़ा ;
एक गुबार सा उठा
जिसने मेरे मन-मस्तिष्क को
झकझोर कर रख दिया और
मैं फिर से उन स्वप्निल क्षणों को
जीने के लिए
बेताब हो उठा |
सच मानिए मेरी दिली तमन्ना है
कि मैं फिर से उन बीती यादों को ,
बचपन के , स्कूल के उन क्षणों को
उस मार को ,
दीदी के साथ की गई तकरार को ,
मम्मी-पापा के उस अनूठे प्यार को
साकार कर सकूँ |
पर मुझे मालूम है कि समय कभी वापस नही लौटता |
मैं भी उन यादों को फिर से जी नहीं सकता ,
पर हाँ ,
मैं उनके सहारे , कुछ ही पलों के लिए सही ,
एक नए जीवन ,
एक नई दुनिया में पदापर्ण कर सकता हूँ |
इसीलिए ,
उन मधुर स्मृतियों में खोए हुए इस मन
से निकलती आवाज को
मैं अपनी लेखनी से एक यादगार रूप दे रहा हूँ |
उम्मीद है , वे आँखें
जो आज अचानक ही बोझिल हो उठीं थीं ,
आज एक नया स्वप्न देखेंगी
और एक नई आशा के साथ
मेरे सुनहरे लक्ष्य को पूरा करने के लिए
मेरी हर संभव सहायता करेंगी ,
ताकि फिर कभी अगर ऐसे क्षणों का आगमन हो
तो मैं मुस्कुरा सकूँ कि
इन्ही कठिन परिस्थतियों के कारण आज मैं
यहाँ पर खड़ा हूँ ,
और खोया हूँ एक बार फिर
उन्ही मधुर स्मृतियों में !!