कारों से बचके क्या होता रंगीन नज़ारे मार गए
तुम गरम चाय के प्यालों से सर्दी को तौबा करते हो
क्या तीर-ए-हवाओं से बचना जब हुस्न के भाले मार गए
दिन रात बैठ कर के घर में शाह मत की बातें करते हो
रानी की चाल सुभानल्लाह हम प्यादों पे दिल हार गए
उनकी आँखों ने हमसे जब, यूँ अनबोली बोली बोली
लो चोरी करने आये थे, लो बनके चौकीदार गए
हमने उनके जलवे देखे नदिया में डुबकी मार गए
वो करते अत्याचार गए हम कहते उसको प्यार गए
मेहनत के फूल जुटाए थे विद्या के गजरे गूंथे थे
किस्मत फूटी थी बेचने हम उनको मीना बाजार गए
हमने सोचा था दिल्ली में अब कसके धूनी रमाएँगे (गांड मराएंगे)
दिल्ली साली क्या रंडी है होते सारे व्यभिचार गए
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न होगी जुलूसों में शिरकत तेरी बरात में ली थी सौं
हमने बखूब निभाया पर लेकर के जनाजा यार गए