Friday, December 26, 2008

गुट का

मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.
गुट के गुट ने ये ठान लिया
जो नींद में है वो जागेगा
हर ख्वाब को हक़ से मांगेगा
जो निपट अकेला चलता था
अब बन जाए वो भी गुट का
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम हैं गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
तू आम सही आवाम तो है
कल का ही सही पैगाम तो है
पर नशे में देश जो लूट रहे
बन जाता उनका जाम तू है
अब छलक निकल जा बोतल से
तू तोड़ कांच, शीशा चटका
अब जाम नहीं अंजाम तू बन
ले पहन ले जामा इस गुट का
मैं भी गुट का, तू भी गुट का
हम सब गुट के, गुट भी गुट का
ये भी गुट का, वो भी गुट का
गुट का गुट है, गुट है गुट का.
साईकिल का ब्रेक भी है गुटका
हाथों का टेक भी है गुटका
है कमल के खाते पर गुटका
हाथी के माथे पर गुटका
हर चरखे का बाना गुटका
हर ऐनक का ताना गुटका
गुटके की खडाऊं खट खट है
हर लाठी है स्याना गुट का.
हर मनु में जब होगा गुट का
ये देश जो एकजुट होगा
हर सटके की तब फट लेगी
हर फटकेला भी सटकेगा
सटके ने गुटके को गटका
गुटके ने सटके ओ पटका
गुटके की फटाफट लाइन दो
बोलो झट से हो लो गुट का
हम हैं गुट के, गुट है गुट का.
मैं भी, तू भी, ये भी, वो भी, हम सब गुट के.
हम सब गुट के, गुट है गुट का.
This was written when I was travelling from bangalore to goa to meet the gang. Gut Ka is our NGO, which aims to satisfy our histrionic needs in the recent future. The poem is dedicated as a “nukkad” opening song for any of the hypothetical nukkads we might perform.