एक उदास शाम कल फिर मेरी तनहाइयों को
और तनहा कर गई;
मेरी गुमनामियों में, खामोशियों में
कुछ और टेल जड़ गई.
मैं अपनी उलझनों में डूबा हुआ,
उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहा था,
आई जो शाम,
मेरे समाधानों को अपनी आँधियों में समेटे
इक नई उलझन पैदा कर गई,
मेरी ख्वाहिशों में इक और ख्वाहिश की शुमारी कर गई.
ख्वाहिश एक अदद ख़ुशी की,
उस तरस में और खुश्की भर गई.
और तनहा कर गई;
मेरी गुमनामियों में, खामोशियों में
कुछ और टेल जड़ गई.
मैं अपनी उलझनों में डूबा हुआ,
उन्हें सुलझाने की कोशिश कर रहा था,
आई जो शाम,
मेरे समाधानों को अपनी आँधियों में समेटे
इक नई उलझन पैदा कर गई,
मेरी ख्वाहिशों में इक और ख्वाहिश की शुमारी कर गई.
ख्वाहिश एक अदद ख़ुशी की,
उस तरस में और खुश्की भर गई.
इतनी परेशानियों के बावजूद, वो शाम मेरे दिल से
एक प्यारी सी गुफ्तगू कर गई,
लगती तो दुश्मन थी पर जाने क्यूँ
मुझसे दोस्ती कर गई.
अचना आई थी, रुलाते हुए, गई भी अचानक और
एक बार फिर रुला कर गई,
एक अलग तरह से रुला कर गई.
एक प्यारी सी गुफ्तगू कर गई,
लगती तो दुश्मन थी पर जाने क्यूँ
मुझसे दोस्ती कर गई.
अचना आई थी, रुलाते हुए, गई भी अचानक और
एक बार फिर रुला कर गई,
एक अलग तरह से रुला कर गई.
आज फिर इक शाम आई है
कल वाली की यादों के साथ.
मैं दोनों को तुलना चाहता हूँ,
जानना चाहता हूँ -
बेहतर किसका तराना है?
वो जो आज हकीकत है या
वो जो आज फ़साना है.
कल वाली की यादों के साथ.
मैं दोनों को तुलना चाहता हूँ,
जानना चाहता हूँ -
बेहतर किसका तराना है?
वो जो आज हकीकत है या
वो जो आज फ़साना है.